गलती और उसकी राजनीति
हाल के समय में यह देखना मुश्किल हो गया है कि कोई नेता यह कहे कि उससे किसी राजनीतिक निर्णय लेने में गलती हुई। कई नेता इस तरह की स्वीकारोक्ति में विश्वास नहीं करते क्योंकि सच की तलाश में उनकी दिलचस्पी नहीं होती। हालांकि, कुछ लोग हैं जो सार्वजनिक तौर पर यह मानते हैं कि उनसे राजनीतिक निर्णय लेने में गलती हुई। एक तरफ लोग गलती मानते नहीं और दूसरी तरफ कुछ नेता मानते भी हैं। इससे पता चलता है कि गलती और इसे ठीक करने की राजनीति में कितना जटिल संबंध है। इसलिए पारदर्शी लेकिन अनिश्चित राजनीति में यह जरूरी
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हाल के समय में यह देखना मुश्किल हो गया है कि कोई नेता यह कहे कि उससे किसी राजनीतिक निर्णय लेने में गलती हुई। कई नेता इस तरह की स्वीकारोक्ति में विश्वास नहीं करते क्योंकि सच की तलाश में उनकी दिलचस्पी नहीं होती। हालांकि, कुछ लोग हैं जो सार्वजनिक तौर पर यह मानते हैं कि उनसे राजनीतिक निर्णय लेने में गलती हुई। एक तरफ लोग गलती मानते नहीं और दूसरी तरफ कुछ नेता मानते भी हैं। इससे पता चलता है कि गलती और इसे ठीक करने की राजनीति में कितना जटिल संबंध है। इसलिए पारदर्शी लेकिन अनिश्चित राजनीति में यह जरूरी हो जाता है कि गलतियों को स्वीकार करने और इसे ठीक करने की दिशा में राजनीति बढ़े। अनिश्चितताओं की वजह से राजनीति में सीखने वाले कई अनुभव मिलते हैं।
गलतियां दो स्तर पर हो सकती हैं। पहली निश्चित रुख को लेकर। दूसरी यह कि किसी लक्ष्य को लेकर जो रुख अपनाया जाता है वह राजनीतिक परिस्थितियों में पारदर्शी होने के साथ-साथ अनिश्चित भी होता है। इसे दूसरे तरह से देखें तो पहले से ही अगर कोई रोडमैप हो तो गलती होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं। यह भारत में वामपंथी राजनीति के संदर्भ में सही लगता है। क्योंकि इस विचारधारा के लोगों ने माना है कि राजनीति कुछ सिद्धांतों पर चलती है। सिद्धांतों की अक्षमता की वजह से गांधीवादी और वामपंथी नेता कभी-कभार भविष्य के लिए जरूरी बातों को भी गलत समझने लगते हैं। राजनीति का नियमन करने वाले ऐसे सिद्धांत इस विचार को सही नहीं मान सकते जिसमें गलती को एक अवसर खोने के तौर पर देखा जा रहा हो।
इसी तरह से गलती उनके साथ भी नहीं होती जो सार्वजनिक तौर पर अपनी राजनीतिक राय नहीं व्यक्त करते। कुछ नेता और फिल्मी कलाकारों जैसे शख्सियतों से गलती की कोई संभावना नहीं रहती क्योंकि वे कभी राजनीतिक राय व्यक्त ही नहीं करते। गलती होना स्वाभाविक है। लेकिन गलती बार-बार होना और इसे ठीक करने की इच्छा नहीं होना ठीक नहीं है। उदाहरण के तौर पर कुछ नेता ऐसे हैं जिनकी पहचान ही यही है कि वे अनाप-शनाप बोलते रहते हैं।
इस संदर्भ में यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि किन परिस्थितियों में गलतियों को सुधारा जा सकता है? नेताओं के राजनीतिक मूड को देखते हुए यह एक तथ्य है कि गलती को सुधारने के लिए शोध पत्र लिखने की जरूरत नहीं है। राजनीतिक परिदृश्य की गलतियों को सुधारने का भी अवसर देता है। अनुभवी नेता इसका इस्तेमाल करके ही अपनी गलतियों को सुधारते हैं। पार्टियां अगर सार्वजनिक तौर पर गलती मानती हैं तो इससे नैतिक राजनीति का दायरा बढ़ता है। गलतियों को मानकर यह सुनिश्चित करना कि ऐसी गलती भविष्य में नहीं होगी, इससे राजनीति का बुनियादी आधार मजबूत होता है। इसलिए राजनीति में गलतियों में सुधार को मुक्ति की राजनीति से जोड़कर देखा जा सकता है। गलतियों को माध्यम की राजनीति से जोड़ना गलत होगा। गलतियों में सुधार करने से एक नैतिक बल का निर्माण होता है और इससे उन ताकतों के खिलाफ राजनीतिक एकता बनती है जो सामाजिक तौर पर प्रभुत्व स्थापित करने की कोशिश में हाशिये के समाज के कुछ लोगों को भ्रमित करके अपने पाले में लाने की कोशिश करते हैं। गलतियों की जिम्मेदारी लेना और खुद को गलत मानने की एक नैतिक उपयोगिता है। लेकिन जिन नेताओं का भारत के भाईचारा, लोकतंत्र और समावेशी मूल्यों में यकीन नहीं है, वे बार-बार यह करके गलती करते हुए अपना करिअर बनाते हैं कि पहले कौन सी गलतियां हुई थीं।