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मौजूदा वक्त में गांधी

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The translations of EPW Editorials have been made possible by a generous grant from the H T Parekh Foundation, Mumbai. The translations of English-language Editorials into other languages spoken in India is an attempt to engage with a wider, more diverse audience. In case of any discrepancy in the translation, the English-language original will prevail.

 

गांधी के बारे में न सिर्फ सबसे अधिक लिखा गया है बल्कि उनके विचारों से नफरत करने वाले भी सबसे अधिक रहे हैं। बहुत लोग उन्हें जन नेता मानते हैं तो एक बड़ा वर्ग उन्हें खारिज भी करता है। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान उन्होंने लोगों को एकजुट करने के लिए जो किया उसके पक्ष और विपक्ष में लोग अपनी बात रखते हैं। नफरत की बातें ऐसे तर्कों पर आधारित होती हैं जिनमें पूर्वाग्रह की भूमिका अधिक होती है। जो लोग ऐसी बात करते हैं उन्होंने न तो गांधी को मूल रूप में पढ़ा है और न ही गांधी का अध्ययन करने वाले विद्वानों के जरिए उन्हें समझने की कोशिश की है। इसके उलट ये लोग उनकी बातों में यकीन करते हैं जो गांधी के समर्थन में बगैर सोचे-समझे कुछ बोलते हैं।

ज्ञान और विधियों के स्तर पर गांधी किसी विद्वान या विश्लेषक को अपने विचारों को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचने देते। इसका मतलब ये हुआ कि उनके विचारों की अंतिम व्याख्या कोई नहीं कर सकता। उनका लेखन अपने खुलेपन की वजह से किसी खास खांचे में बंधता हुआ नहीं दिखता। बल्कि इस वजह से गांधी की व्याख्या  अलग-अलग ‘अवतारों’ में होती है। गांधी साम्राज्यवाद विरोधी दिखते हैं, राष्ट्रवादी दिखते हैं, वैकल्पिक आधुनिकतावादी दिखते हैं, आदर्शवादी दिखते हैं और महिलाओं के अधिकारों के पक्ष के साथ-साथ और भी कई अन्य रूपों में दिखते हैं। गांधी पर हमला करने के तौर-तरीके नहीं समझने की वजह से भी कुछ लोग परेशान रहते हैं। कुछ लोग जो गांधीवाद को खत्म करना चाहते थे और इसमें सफल नहीं हो पाए, वे लोग अब खुद को इससे जोड़ रहे हैं। गांधी अपने विचारों को रखने के लिए संवाद की राह पर चलते थे। उन्होंने बौद्धिक संसाधनों का इस्तेमाल करके पारंपरिक सोच वाले लोगों के साथ भी संवाद कायम किया। गांधी के विचार अंदर से काम करते हैं। गांधी भारतीयों के पश्चिमी सोच की गुलामी की बात भी कहते हैं। लेकिन वे अपनी बौद्धिक क्षमता का परिचय उस वक्त भी देते हैं जब वे भारतीय परिस्थितियों के हिसाब से लोगों को गोलबंद करने की कोशिश करते हैं। यही वजह थी कि उनकी सहनशीलता, अहिंसा और अवज्ञा की भाषा विदेशी शासन के खिलाफ प्रभावी साबित हुई। वहीं सेवा, संवेदना और भरोसा जैसी बातों ने आम लोगों में विश्वास पैदा किया। इस तरह की भाषा में जो भावनात्मकता है, उसका एक अलग तरह का प्रभाव पैदा होता है। ‘हरिजन’ शब्द का इस्तेमाल करके गांधी ने निचली जातियों को सवर्णों के बराबर लाने की कोशिश की। अपनी विधियों की वजह से गांधी अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ विभिन्न वर्गों के लोगों को एकजुट करने में कामयाब हुए। आम लोग इस तरह की भाषा में सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि इससे तुरंत विरोधी नाराज नहीं होता। इसलिए गांधी के विचार अपने सामाजिक आधारों की वजह से खुलेपन वाले दिखते हैं और इस वजह से लोगों को खुद से जोड़ने में सफल दिखते हैं।

खुलेपन की वजह से गांधी के विचार कोई सेंसरशिप नहीं थोपते हैं। न तो सामग्री के स्तर पर और न ही भाषा के स्तर पर। उनके विचार विभिन्न व्याख्यााओं और स्वस्थ्य आलोचना के लिए खुले हैं। उनके विचार एक खुले मैदान की तरह हैं जिसमें कोई भी गोता लगा सकता है। लेकिन इस खुलेपन का यह मतलब नहीं है कि ये विचार एकतरफा हैं। इस विचार के मूल में यह बात है कि मानवता पर आधारित एक नैतिक समाज बने। लोगों को गोलबंद करने में इसकी प्रासंगिकता है। ताकि सामाजिक सपनों को साकार किया जा सके। इसमें खुले में शौच से मुक्ति के साथ अस्पृश्यता से मुक्ति भी शामिल है जो ‘जाति में बंधे दिमाग’ में गहराई से बैठा है।

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