ISSN (Print) - 0012-9976 | ISSN (Online) - 2349-8846

अमेरिका-उत्तर कोरिया संकट

अगर परमाणु हमलों की कोई विपदा पैदा होती है तो इसकी जिम्मेदारी अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र दोनों को लेनी होगी

 
 

The translations of EPW Editorials have been made possible by a generous grant from the H T Parekh Foundation, Mumbai. The translations of English-language Editorials into other languages spoken in India is an attempt to engage with a wider, more diverse audience. In case of any discrepancy in the translation, the English-language original will prevail.

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप शायद ही कभी नरमी से या थोड़ा संभलकर काम करते दिखते हैं. राष्ट्रपति बनने के बाद वे एशिया पहली बार आए तो जापान पहुंचे. इस दौरे की शुरुआत उन्होंने जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे के साथ गोल्फ खेलकर की. अबे जापानी संविधान में संशोधन के लिए प्रयास कर रहे हैं. खास तौर पर वे अनुच्छेद-9 को बदलना चाहते हैं जिसकी वजह से रक्षा क्षेत्र में जापान पर कई बंदिशें हैं. अगर यह बदल जाता है कि अमेरिका को जापान में सैन्य उपकरण की आपूर्ति का बड़ा ठेका मिल सकता है. गोल्फ खेलने के बाद जो बातचीत हुई उसमें काफी समय उत्तर कोरिया के मसले पर गया. इसके बाद हुई प्रेस वार्ता में अबे ने साफ कर दिया कि उत्तर कोरिया के मामले में जापान और अमेरिका 100 फीसदी एक साथ हैं. हमेशा की तरह ट्रंप ने यहां भी कहा कि सारे विकल्प खुले हैं. इसमें युद्ध और परमाणु बम का इस्तेमाल भी शामिल है.

अपने अगले विदेश दौरे में उन्होंने दक्षिण कोरिया की नैशनल असंेबली को संबोधित किया. यहां वे उत्तर कोरिया पर जमकर बरसे. हालांकि, 1945 से ही अमेरिका की विदेश नीति में उत्तर कोरिया को लेकर यही भाव रहा है. उस वक्त अमेरिकी सेना दक्षिण कोरिया पहुंची थी. इसके महीने भर पहले अगस्त 1945 में रूस की सेना कोरिया आई थी और उसने जापानियों का आत्मसमर्पण पूरा कराया था. लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के अपने सहयोगी के अनुरोध को मानकर सोवियत संघ ने अपनी सेना को 38वें समानांतर पर तैनात रखने की सहमति दी. सितंबर महीने के शुरुआती दिनों में अमेरिकी सेना के आने के पहले ही सियोल ने पीपल रिपब्लिक आॅफ कोरिया की घोषणा की और जनता की विकेंद्रित समितियां बनाई गईं. उन्हें कार्यभार दिया गया. इसे कोरिया के अधिकांश लोगों और सोवियत सेना ने स्वीकार किया.

 

लेकिन कोरिया के दक्षिणपंथी ताकतों से मिलकर अमेरिकी सेना ने कोई और ही योजना बनाई. इन लोगों ने लोगों की समिति और दक्षिण में पीपल रिपब्लिक की अवधारणा को खारिज करके कोरिया का दो हिस्से में बंटवारा सुनिश्चित कर दिया. जापानियों के आत्समर्पण और संयुक्त राष्ट्र की सहमति से 1950 में शुरू हुए युद्ध के बीच दक्षिण में एक लाख लोग मारे गए थे ताकि जनसमितियां भंग हो सकें और जो व्यवस्था बनी थी, वह बिगड़ सके. कोरिया में युद्ध की शुरुआत 1945 में अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद ही शुरू हुई थी. उसे गृह युद्ध कहा गया. लेकिन 1950 से 1953 के बीच चले युद्ध को पहले के युद्ध का दूसरे तरीकों से विस्तार कहा जा सकता है. 1953 में युद्धविराम पर दस्तखत किए गए और लड़ाई बंद हुआ. लेकिन शांति समझौता कभी नहीं किया गया. इसलिए तकनीकी तौर पर यह कहा जा सकता है कि अमेरिका और उत्तर कोरिया में युद्ध अब भी चल रहा है.

 

अमेरिका हमेशा उत्तर कोरिया की तुलना बुरी ताकतों से करता आया है. 1970 के दशक में चीन के अमेरिका से कूटनीतिक संबंध स्थापित करने और 1990 के दशक में शीत युद्ध खत्म होने के बाद उत्तर कोरिया को आणविक क्षेत्र में मदद करने वाला कोई नहीं बचा. इसलिए उसने अपना परमाणु बम बनाने का निर्णय लिया. उत्तर कोरिया ने जापान के साथ संबंध सामान्य करने की कोशिशें कीं. 2002 का प्योंगयांग घोषणापत्र इसका उदाहरण है. लेकिन तब तक अमेरिका ने उत्तर कोरिया को इराक और ईरान के साथ बुरे देशों की श्रेणी में डाल दिया था. 2006 के सितंबर तक अमेरिका ने जापान को उत्तर कोरिया के साथ रिश्तों से पीछे हटने को मना लिया. इसके अगले महीने यानी अक्टूबर में उत्तर कोरिया ने पहली बार भूमिगत परमाणु परीक्षण किया. जनवरी, 2016 तक उत्तर कोरिया ऐसे चार परीक्षण कर चुका है. लंबी दूरी के बैलेस्टिक मिसाइलें भी उत्तर कोरिया ने विकसित कीं. जुलाई 2017 में एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक पहुंचने वाली मिसाइल का परीक्षण उत्तर कोरिया ने किया.

 

संयुक्त राष्ट्र की ओर से लगाए जाने वाले कई प्रतिबंधों, अमेरिकी धमकियों और अमेरिका-दक्षिण कोरिया साझा युद्धाभ्यास का भी उत्तर कोरिया पर कोई असर नहीं पड़ रहा. उत्तर कोरिया ने परमाणु हथियारों ने ही उसके अस्तित्व के अधिकार को बचाए रखा है. संयुक्त राष्ट्र को कोरिया में हुए कई गड़बड़ की जिम्मेदारी लेनी होगी. संयुक्त राष्ट्र के झंडे तले जो अमेरिकी सेना, दक्षिण कोरियाई सेना और अन्य सेनाओं ने युद्ध के दौरान जो अपराध किए हैं, उसकी जिम्मेदारी उसे लेनी होगी. दक्षिण कोरिया सरकार की ट्रूथ ऐंड रिकांसिलेशन आयोग ने 2005 के 2010 के बीच सक्रिय होकर ऐसे अपराधों की जानकारी दी है. इसकी जिम्मेदारी संयुक्त राष्ट्र को लेनी चाहिए. साथ ही पिछले सात दशकों में जिस तरह से अमेरिका ने उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार बनाने के लिए उकसाया है, उसकी जिम्मेदारी भी संयुक्त राष्ट्र को लेनी चाहिए. सच्चाई तो यह है कि 38वें समानांतर के दोनों तरफ शांति नहीं स्थापित होने की असल वजह अमेरिका की साम्राज्यवादी नीतियां हैं. अमेरिका ने दोनों पक्षों में बातचीत से लेकर एक होने की संभावनाओं की राह में लगातार रोड़े अटकाए हैं.

Back to Top