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खतरनाक रवैया

नरेंद्र मोदी चुनावी फायदों के लिए साजिशों का बेतुका सिद्धांत दे रहे हैं

 
 

The translations of EPW Editorials have been made possible by a generous grant from the H T Parekh Foundation, Mumbai. The translations of English-language Editorials into other languages spoken in India is an attempt to engage with a wider, more diverse audience. In case of any discrepancy in the translation, the English-language original will prevail.

चुनावों के दौरान नेताओं से सच बोलने की उम्मीद नहीं की जाती है. चुनाव प्रचार के दौरान झूठ और गलतबयानी बेहद आम हो गया है. लेकिन अगर वही नेता प्रधानमंत्री हो तो उससे थोड़ा बेहतर की उम्मीद करना गलत नहीं होगा. लेकिन भारत के लोगों की इस उम्मीद पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 10 दिसंबर को गुजरात के बनासकांठा में पानी फेर दिया. बढ़-चढ़कर बातें करने की शैली उन्होंने विकसित की है लेकिन उस दिन तो वे सारी सीमाओं को पार कर गए. मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और पूर्व सेनाध्यक्ष दीपक कपूर पर देश के खिलाफ षडयंत्र रचने का आरोप लगाया. उन्होंने यह बयान अचानक नहीं दिया. बल्कि यह गुजरात चुनावों में अपने पक्ष में मतों के धु्रवीकरण के लिए दिया गया बयान था. उन्होंने कहा कि हमारे देश के दुश्मन ‘पाकिस्तान’ के साथ मिलकर विपक्ष गुजरात में एक मुस्लिम अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए षडयंत्र रच रहा है. उनके मुताबिक 6 दिसंबर को कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर के घर पर हुई तीन घंटे ‘गोपनीय’ की बैठक में यह सारा षडयंत्र रचा गया. मोदी ने जो बातें कही हैं उनमें सिर्फ एक तथ्य है- तीन घंटे. इसमें कुछ भी ‘गोपनीय’ नहीं था. अय्यर ने वह दावत अपने पुराने दोस्त और पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी के सम्मान में दी थी.

 

हालांकि, मोदी जो बोलते हैं, उसका कोई यकीन नहीं करता. फिर भी वे अक्सर पाकिस्तान, कांग्रेस और मुसलमानों को लेकर नया झूठ गढ़ते हैं. यह बेहद खतरनाक है. क्योंकि वे इस देश के निर्वाचित नेता हैं. उनसे उम्मीद की जाती है कि वे सिर्फ अपने समर्थकों के लिए नहीं बल्कि पूरे देशवासियों के लिए बोलेंगे. वे अक्सर भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान से जोड़ते हैं ताकि इस वर्ग के लोगों को हमेशा भारत के प्रति वफादारी का सबूत देना पड़े. वे कांग्रेस पर यह आरोप लगाते हैं कि वह दुश्मन देश पाकिस्तान के साथ मिलकर भाजपा को सत्ता से बेदखल करने का षडयंत्र कर रही है. मुस्लिम समाज के लोगों को कभी गाय के नाम पर तो कभी लव जिहाद के मामले पर निशाना बनाया जा रहा है लेकिन मोदी जानबूझकर इस मसले पर कभी नहीं बोले. सबसे हालिया घटना 6 दिसंबर की है. राजस्थान के राजसमंद में मोहम्मद अफरजुल को मार दिया गया. इस तरह की राजनीति न सिर्फ मुसलमानों को हाशिये पर धकेल रही है बल्कि लोकतंत्र की बुनियाद को भी कमजोर कर रही है. दुर्भाग्य से कांग्रेस भी भाजपा के मुस्लिम-विरोधी एजेंडे का मुकाबला करने में इन चुनावों में नाकाम रही है. कांग्रेस भी यह कोशिश करती रही कि वह मुस्लिमपरस्त नहीं दिखे. यह करते हुए उसने आबादी के इस अहम हिस्से के दशकों के दमन को आवाज नहीं दिया.

 

गुजरात में चुनाव प्रचार अभियान जिस तरह से चला वह चिंताजनक है. राज्यों में हो रहे हर चुनाव से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि मोदी के आसपास व्यक्तिपूजा केंद्रित हो गई है. चुनावी सभाओं में उन्माद में ‘मोदी, मोदी’ के नारे लगता हैं. साबरमती में सीप्लेन उतारने का नाटक किया जाता है और यह दावा किया जाता है कि भारत में पहली बार ऐसा हुआ. हालांकि, अंडमान निकोबार में सालों से सीप्लेन का इस्तेमाल किया जा रहा है. मणिशंकर अय्यर के एक गलत बयान को पकड़कर खुद को प्रधानमंत्री ने चुनावी फायदों के लिए बार-बार एक पीड़ित के तौर पर पेश किया. इस तरह की राजनीति में वे लोगों से अपनी प्रति पूर्ण वफादारी की उम्मीद करते हैं. ऐसी परिस्थिति में राष्ट्र की एक नई परिभाषा गढ़ने को कोशिश हो रही है- मोदी ही भारत हैं और भारत मोदी है.

 

गुजरात में चुनाव प्रचार बेहद निचले स्तर पर पहुंचा. क्या अब भी हिंदुत्व को बेचने के लिए विकास का इस्तेमाल किया जाएगा. क्योंकि वहां विकास की बात नहीं की गई. विकास कितना खोखला है, यह सीप्लेन के स्टंट से ही पता चलता है. ऐसा करके लोगों को बेवकूफ बनाने की कोशिश की गई ताकि रोजी-रोटी का संकट झेल रहे लोगों के मन में भी विकास की एक गलत तस्वीर गढ़ी जा सके. इन मुद्दों पर भी धर्म, पहचान और नेता के प्रति वफादारी जैसे मुद्दे हावी रहे. अगले दो सालों में नफरत वाले भाषण, विभाजनकारी रणनीति और अल्पसंख्यकों को हाशिये पर ले जाने वाली और कोशिशें दिखेंगी. ऐसे में विपक्ष की चुनौती यह होगी कि वह भाजपा के एजेंडे का मुकाबला करने के लिए एक अलग और समावेशी एजेंडा पेश करे.

 

मोदी के बेतुके आरोपों का मनमोहन सिंह ने कड़ा जवाब दिया. उन्होंने कहा, ‘मोदी एक गलत परंपरा स्थापित कर रहे हैं. वे हर संवैधानिक संस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं. इनमें प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष की संस्था भी शामिल है.’ इस बात को लेकर हमें चिंतित होने की जरूरत है. देश के प्रधानमंत्री द्वारा इन मर्यादाओं का ख्याल नहीं रखा जाना चिंतित करने वाला है. जहां तक मोदी का सवाल है, जैसे युद्ध में हर चीज सही होती है, वैसे ही उनके लिए चुनावों में सब कुछ सही है. उनके लिए सिर्फ जीत का मतलब. इसका कोई मतलब नहीं कि वे कैसे जीते.

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