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स्वैच्छिक अस्वीकार की स्थिति

2012-13 के बाद दूसरी तिमाही में अब तक की सबसे कम विकास दर 6.3 फीसदी इस साल दर्ज की गई

 

The translations of EPW Editorials have been made possible by a generous grant from the H T Parekh Foundation, Mumbai. The translations of English-language Editorials into other languages spoken in India is an attempt to engage with a wider, more diverse audience. In case of any discrepancy in the translation, the English-language original will prevail.

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने राष्ट्रीय आय के हालिया आंकड़े जारी कर दिए हैं. इससे पता चलता है कि भारतीय अर्थव्यवथा बुरी स्थिति में है. 2017-18 के दूसरी तिमाही में विकास दर यानी जीडीपी 6.3 फीसदी रही. सरकार इसे कायापलट का संकेत कह रही है. सरकार और कारोबारी प्रेस द्वारा जो तर्क दिए जा रहे हैं, वे इस प्रकार हैंः जनवरी-मार्च 2016 में जीडीपी 9.1 फीसदी थी. इसके बाद से हर तिमाही में इसमें कमी आई है. लेकिन चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी पहली तिमाही के मुकाबले अधिक रही. इस आधार पर वे कह रहे हैं कि विकास दर में गिरावट का दौर खत्म हो गया है. दुर्भाग्य से यह गलत है. किसी भी तिमाही के विकास दर की वास्तविक तुलना तब होती है जब उसे पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही के मुकाबले देखा जाए. क्यों अर्थव्यवस्था का अपना एक चक्र होता है. सच्चाई तो यह है कि नए ढंग से विकास दर के जो आंकड़े एकत्रित किए जा रहे हैं, उनमें से दूसरी तिमाही की यह सबसे खराब विकास दर है. देश की अर्थव्यवस्था बुरी हालत में है लेकिन सरकार जानबूझकर अस्वीकार का रुख अपनाए हुए है.

 

नई पद्धति में दूसरी तिमाही में विकास दर बाकी तिमाही के मुकाबले एक फीसदी अधिक रही है. अब तक इसका अपवाद 2015-16 की आखिरी तिमाही और 2016-17 की पहली तिमाही रही है. इस हिसाब से देखें तो इस साल की विकास दर 6.3 फीसदी से अधिक रहने की उम्मीद नहीं है. 2012-13 से कभी भी सालाना विकास दर दूसरी तिमाही की जीडीपी से अधिक नहीं रही. इस नाते देखें तो इस साल की अधिकतम विकास दर 6.3 फीसदी रहेगी जो 2016-17 के 7.1 फीसदी और 2015-16 के 8 फीसदी के मुकाबले काफी कम है.

 

नई पद्धति में पहली छमाही में सामान्य तौर पर विकास दर दूसरी छमाही से एक फीसदी अधिक होती है. इसका अपवाद सिर्फ 2015-16 रहा है. चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 6 फीसदी की विकास दर नई पद्धति के तहत पहली छमाही की अब तक की सबसे कम विकास दर है. इस हिसाब से इस साल विकास दर छह फीसदी या इससे कम रहने का अनुमान लगाया जा सकता है. जो हालिया सालों में सबसे कम है.

जीवीए के आधार पर भी इसी तरह का तर्क दिया जा रहा है. कहा जा रहा है कि विनिर्माण की विकास दर दूसरी तिमाही में 7 फीसदी हो गई. पहली तिमाही में यह 1.2 फीसदी थी. लेकिन पिछले वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में यह दर 7.7 फीसदी थी. इससे साफ है कि विनिर्माण क्षेत्र में तेजी का सरकार का दावा सही नहीं है.

 

जीवीए के आधार पर वित्तीय सेवाओं, रियल एस्टेट और पेशेवर सेवाओं में 5.7 फीसदी की विकास दर और कृषि क्षेत्र में 1.7 फीसदी की विकास दर नई पद्धति में दूसरी तिमाही में अब तक के सबसे निचले स्तर पर है. कुल जीवीए में इनकी हिस्सेदारी 55 फीसदी है. हालांकि, खनन, बिजली, कारोबार, होटल और संचार में सुधार दिखा है. जबकि निर्माण और लोक प्रशासन में गिरावट आई है. इसलिए विकास में तेजी का कोई प्रमाण नहीं मिलता. इसके उलट अर्थव्यवस्था की खराब सेहत के कई संकेतक मिलते हैं.

 

निवेश का माहौल नहीं सुधरा. हालांकि, पिछले साल के तीन फीसदी के मुकाबले इस साल की दूसरी तिमाही में सकल स्थायी पूंजी निर्माण की विकास दर 4.7 फीसदी रही. लेकिन 2011-12 की दूसरी तिमाही में जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 35.6 फीसदी थी जो इस साल दूसरी तिमाही में घटकर 28.8 फीसदी हो गई. 

 

विकास दर में कमी का पहली बार 2016-17 की दूसरी तिमाही में स्पष्ट तौर पर दिखा था. यह संकट नोटबंदी से और गहराई. जीएसटी ने इसमें आग में घी का काम किया. विकास दर के आंकड़ों से यह पता चल रहा है कि इन दोनों कदमों से आर्थिक विकास दर पर नकारात्मक असर पड़ा. इससे साफ पता चलता है कि अर्थव्यवस्था ठीक स्थिति में नहीं है. इसलिए सरकार को अपने मनमाफिक नीतियां बनाने और ऐसे कदमों से बचना चाहिए. तथ्यों का नकारकर और लोगों को भ्रमित करके सरकार अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती. समस्या के समाधान के लिए सबसे पहले यह स्वीकार करना होगा कि समस्या है.

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