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बच्चों को चाहिए सुरक्षा

स्कूलों में बच्चों का यौन शोषण बाल सुरक्षा कानूनों की खामियों को उजागर करने वाला है

 

8 सितंबर, 2017 को गुरुग्राम के नामी-गिरामी रेयान इंटरनेशनल स्कूल के शौचालय में एक बच्चे की हत्या कर दी गई. इसके बाद पुलिस ने स्कूल बस कंडक्टर को गिरफ्तार किया. उस पर आरोप है कि उसने बच्चे का यौन शोषण करने की कोशिश की और जब बच्चे ने विरोध किया तो उसकी हत्या कर दी. जांच से पता चल रहा है कि न तो स्कूल ने अपनी जिम्मेदारियों का पालन किया और न ही सरकार ने उन संवैधानिक प्रावधानों पर ध्यान दिया जिसमें बाल अधिकारों की रक्षा की बात कही गई है.

शहरी स्कूलों में यौन शोषण का सबसे हालिया मामला यह है. लड़के और लड़कियां दोनों इसके शिकार हैं. इससे पता चलता है कि व्यवस्थागत खामियां व्याप्त हैं. राष्ट्रीय आपराधिक रिकाॅर्ड ब्यूरो के आंकड़े बता रहे हैं कि 2014 से 2015 के बीच पोक्सो कानून के तहत बच्चों के खिलाफ अपराध 8,904 से बढ़कर 14,913 पर पहुंच गए. 2007 के एक अध्ययन से पता चलता है कि तीन में से दो बच्चे को शारीरिक शोषण का सामना करना पड़ा. 53.22 फीसदी बच्चों का एक या एक से अधिक तरह के यौन शोषण का सामना करना पड़ा. 12,000 बच्चों के सैंपल में से तकरीबन आधे बच्चों ने स्कूल में यौन शोषण का सामना किया था. शारीरिक शोषण झेलने वाले बच्चों में 54.68 फीसदी लड़के थे. इनमें से अधिकांश ने कभी किसी को इस बारे में नहीं बताया. 2015 में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष की एक रिपोर्ट में भी इस समस्या के बारे में बताया.

महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की एकीकृत बाल सुरक्षा योजना के तहत उनकी रक्षा करने की बात की गई है. इसे परिवार, समाज, सिविल सोसाइटी और सरकार की जिम्मेदारी माना गया है. लेकिन जिस स्कूल में बच्चे दिन का आधा वक्त गुजारते हैं उन्हें बच्चों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार नहीं माना गया.

निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून में शिक्षा स्तर की बात तो की गई है लेकिन बाल सुरक्षा पर कुछ नहीं कहा गया. पोक्सो कानून भी सीधे तौर पर स्कूलों से जुड़ा नहीं है. जुवेनाइल जस्टिस कानून का भी यही हाल है.

रेयान इंटरनेशनल जैसे बड़े स्कूल का नाम जुड़ने से इस मसले पर बात हो रही है. हालांकि, इसकी जरूरत काफी पहले से थी. लेकिन इसके बावजूद काफी कुछ करने को है. एनसीईआरटी के निदेशक ने एक बयान में कहा है कि बच्चों को शोषण से बचाने और इनसे स्कूल में निपटने पर शिक्षा सामग्री लागू करने पर विचार चल रहा है. नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने बाल शोषण के खिलाफ जागरूकता फैलाने के लिए भारत यात्रा की शुरुआत की है. हरियाण के स्कूलों को अब अपने कर्मचारियों का पुलिस सत्यापन कराना होगा, बाल सुरक्षा के लिए समिति बनानी होगी, सीसीटीवी कैमरे लगाने होंगे और छात्रों को सुरक्षित परिवहन सुविधा मुहैया करानी होगी. ये शुरुआती कमद हैं लेकिन पर्याप्त नहीं हैं. स्कूलों को जिम्मेदार बनाने के लिए कानूनी प्रावधान करने की जरूरत है.

बच्चों की सुरक्षा के लिए बुनियादी ढांचा और शिक्षा से अधिक कुछ करने की जरूरत है. सरकार को सभी बच्चों के अभिभावक की तरह काम करना होगा. जिस तरह से निजी स्कूलों की संख्या बढ़ी है, उसे ध्यान में रखते हुए बाल अधिकारों में ऐसे प्रावधान करने चाहिए जिससे स्कूल, शिक्षकों और अभिभावकों की बच्चों की सुरक्षा में जिम्मेदारी तय हो सके. बच्चे चाहे जिस भी कक्षा में हों, चाहे वे गांव में हों या शहर में, उन्हें स्कूल में, घर में और रास्ते में सुरक्षित और हिंसा मुक्त माहौल चाहिए.

Updated On : 13th Nov, 2017
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